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प्रसंग- प्रस्तुत सवैया रीतिकालीन कवि देव के द्वारा रचित है और इसे हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग- 2) में संकलित किया गया है। कवि ने श्री कृष्ण, के बालरूप र्को अद्भुत सुंदरता का वर्णन किया है।
व्याख्या- कवि कहता है कि श्री कृष्ण के पाँव में पाजेब है जो उन के चलने पर बजने के कारण अत्यंत सुंदर ध्वनि उत्पन्न करती है। उनकी कमर में करघनी है जो मीठी धुन पैदा करती है। उनके साँवले-सलोने अंगों पर पीले रंग के वस्त्र शोभा देते हैं। उनकी छाती पर शोभा देती हुई फूलों की माला मन में प्रसन्नता उत्पन्न करती है। उनके माथे पर अट है और उन की बड़ी-बड़ी आँखें हैं जो चंचलता से भरी हैं। उनकी मंद-मंद हँसी उनके चांद जैसे सुंदर चेहरे पर चांदनी की तरह फैली हुई है। संसार रूपी इस मंदिर में दीपक के समान जगमगाते हुए अति सुंदर श्रीकृष्ण की जयजयकार हो। देव कवि कहता है कि जीवन में सदा श्रीकृष्ण सहायता करते रहें।
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रूपक:
• मुखचंद।
• मंद हंसी जुन्हाई।
• जग-मंदिर-दीपक।
अनुप्रास:
• हिये हुलसै।
• कीट किंकिनि।
• पट पीत।
• मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
• जै जग-मंदिर।
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर प्रसंग सहित व्याख्या कीजिये:
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
प्रसंग- प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग- 2) में संकलित ‘कवित्त’ से लिया गया है। जिस के रचयिता रीतिकालीन कवि देव है। कवि ने ऋतुराज बसंत को एक बालक के रूप में प्रस्तुत किया है और प्रकृति के प्रति अपने प्रेम भाव को प्रकट किया है।
व्याख्या- कवि कहता है कि बसंत ऋतु आ गई। बसंत एक नन्हें बालक की तरह पेड़ की डाली पर नए-नए पलों के पलने रूपी बिछौने पर झूलने लगा है। फूलों का ढीला-ढाला झबला उस के शरीर पर अत्यधिक शोभा दे रहा है। अर्थात् बसंत के आते ही पेड़-पौधे नए-नए पत्तों और फूलों से सज-धज कर शोभा देने लगे हैं। हवा उसके पलने को झुलाती है। देव कवि कहता है कि मोर और तोते अपनी-अपनी आवाजों में उस से बातें करते हैं। कोयल उसके पलने को झुलाती है और तालियाँ बजा-बजा कर अपनी प्रसन्नता प्रकट करती है। कमल की कली रूपी नायिका सिर पर लता रूपी साड़ी से सिर ढांप कर अपने पराग कणों से बालक बसंत की नजर उतार रही है। अर्थात् वह बालक बसंत को दूसरों की बुरी नजर से बचाने का वैसा ही टोटका कर रही है, जैसा सामान्य नारियाँ किसी बच्चे की नजर उतारने के लिए उस के सिर के चारों ओर राई-नमक घुमाकर आग में डालने का टोटका किया करती हैं। यह बसंत कामदेव महाराज का बालक है जिसे प्रात: होते ही गुलाब चुटकियाँ बजा कर जगाते हैं। अर्थात् गुलाब की कली फूल में बदलने से पहले जब चटकती है तो बसंत को जगाने के लिए ही ऐसा करती है।
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
कवित्त में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
बालक बसंत का बिछौना किस से बना है?
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
बसंत ने कैसे वस्त्र पहने हुए हैं?
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
बसंत के पालने को सुलाने का कार्य कौन कर रहा है?
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
कोयल क्या-क्या कर रही है?
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
कमल की कली रूपी नायिका ने अपना सिर किस से ढांपा और उसने क्या किया?
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
प्रात: होते ही बसंत को गुलाब किस प्रकार जगाते हैं?
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
राई-नोन से टोटका करने की जगह बसंत की नजर किस से उतारी गई?
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
कवि ने किस के बालक के जन्म अवसर पर प्रकृति में परिवर्तन चित्रित किए हैं ?
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
प्रकृति का चित्रण किस रूप में किया गया है?
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
किस भाषा की योजना की गई है?
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये:
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
किस प्रकार की शब्द-योजना की गई है?
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये:
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
बिंब योजना किस प्रकार की है?
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये:
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
लयात्मकता की सृष्टि किस कारण हुई है?
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अनुप्रास-पलना बिछौना नव पल्लब, बतराबैं, देव, हलवै-हुलसावै।
‘सिर सारी’
‘मदन महीप’
‘केकी कीर’, ‘कर तारी’
‘बालक बसंत’
‘पुरित पराग सों उतारों करै राई’
रूपक-मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।
प्रसंग- प्रस्तुत पद रीतिकालीन कवि देव के द्वारा रचित है जिस में कवि ने चांदनी रात की आभा को अति सुंदर ढंग से प्रकट किया है। कवि ने वास्तव में इसके माध्यम से राधा के रूप-सौंदर्य को प्रस्तुत करने की चेष्टा की है।
व्याख्या- अमृत की धवलता और उज्ज्वलता वाले भवन को स्फटिक की शिलाओं से इस प्रकार बनाया गया है कि उस में दही के समुंदर की तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है। देव कवि कहते हैं कि भवन बाहर से भीतर तक चाँदनी उज्ज्वलता से इस प्रकार भरा हुआ है कि उसकी दीवारें भी दिखाई नहीं दे रही। दूध के झाग जैसी उज्ज्वलता सारे गन और फर्श के रूप में बने ऊँचे स्थान पर फैली हुई है। इस भवन में तारे की तरह झिलमिलाती युवती राधा ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे मोतियों की आभा और जूही की सुगंध हो। राधा की रूप छवि ऐसी ही है। आइने जैसे साफ-स्वच्छ आकाश में राधा का गोरा रंग ऐसे फैला हुआ है कि इसी के कारण चंद्रमा राधा का प्रतिबिंब-सा लगता है।
भवन स्फटिक का बना है और चाँदनी की उज्ज्वलता का प्रसार ऐसा है कि बाहर से भीतर तक की दीवार दिखाई नहीं देती।
भवन स्फटिक का बना है और चाँदनी की उज्ज्वलता का प्रसार ऐसा है कि बाहर से भीतर तक की दीवार दिखाई नहीं देती।
सभंग यमक- • उदधि दधि।
रुपक- • उदधि दही।
अनुप्रास-
• ‘सिलानि सौ सुधारयौ सुधा’।
• ‘फेन फैल्यो’।
• ‘तारा सी तरुनि तामें’, ‘मोतिन की जोति’।
• ‘मिल्यो मल्लिका को मकरंद’।
उत्पेक्षा- • फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर।
व्यतिरेक- • प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।
उपमा- • दूध को सोफेन फैल्यो चिन फरसबंद।
• तारा-सीस तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति
• आरसी से अंबर में
• आभा सी उजारी लगै।
(क) अनुप्रास-
(i) कटि किंकिनि के पुनि की मधुराई
(ii) सांवरे अंग लसै पट पीत।
(iii) हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
(iv) मंद हंसी मुखचंद जुलाई।
(v) जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर।
(ख) रूपक-
(i) मंद हंसी मुखचंद जुंहाई।
(ii) जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर।
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य कीजिए-
पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
देव रीतिकालीन आचार्य कवि थे, जिन के काव्य में रीतिकालीन कविता की लगभग सभी विशेषताएँ दिखाई दे जाती हैं। पठित कविताओं के आधार पर उनकी निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ दिखाई देती है-
1 श्रृंगारिकता- देव ने अपनी कविताओं में राधा-कृष्ण के माध्यम से अपनी श्रृंगारिक भावनाएँ प्रकट की हैं। उनकी प्रवृत्ति भी अन्य रीति कालीन कवियों की तरह संयोग श्रृंगार में अधिक रमी है। राधा की रूप माधुरी ने विशेष रूप से प्रभावित किया है। चाँदनी रात में उसका रूप ऐसा निखरा हुआ है कि चंद्रमा भी उसका बिंब मात्र दिखाई देती है-
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होती,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा-सी उजारी लगै,
पारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।
2. भक्ति- भाव-देव चाहे श्रृंगारिक कवि थे, पर भारतीय संस्कारों में बंध कर वे कभी नास्तिक नहीं रहे। उन्होंने अपनी कविता में बार-बार वैराग्य भावना और आस्तिकता को प्रकट किया है। वे वैष्णव थे। उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रति अपने भक्ति-भाव को प्रकट किया है-
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हंसी मुख चंद जुलाई,
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्री बजदूलह ‘देव’ सहाई।।
3. प्रकृति-चित्रण-देव ने अपनी कविताओं में प्रकृति -चित्रण अति सुंदर ढंग से किया है। उनके काव्य में प्रकृति साध्य नहीं है बल्कि साधन है। उन्होंने प्रकृति वर्णन में ऋतु वर्णन की परंपरा का पालन किया। उनकी प्रकृति संबंधी मौलिक दृष्टि की वहां सराहना करनी पड़ती है जहाँ उन्होंने बसंत का अति भावपूर्ण चित्रण किया है। उन्होंने बसंत का परंपरागत वर्णन न कर उसे कामदेव के बालक के रूप में प्रकट किया है जिसकी सेवा में सारी प्रकृति लीन हो जाती है-
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।
4. कलापक्ष- देव ने अपने काव्य को सफल अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए शब्द शक्तियों का अच्छा प्रयोग किया। उनके अमिधा के प्रयोग में सहजता है। उन्होंने माधुर्य और प्रसाद गुण का अच्छा प्रयोग किया है। उन्हें अनुप्रास अलंकार के प्रति विशेष मोह है-
(i) पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन
(ii) मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि
(iii) कटि किंकिनि कै पुनि की मधुराई
(iv) मोतिन की जोति मिलो मल्लिका को मकरंद
इन्होंने उपमा का प्रयोग भी अच्छा किया है। ब्रज भाषा की कोमलकांत शब्दावली का इन्होंने सार्थक और सुंदर प्रयोग किया है। इनके काव्य में तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग किया है।
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विश्व भर में उद्योग-धंधों को बड़ी तेजी से स्थापित किया जा रहा है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद हर देश नए-नए उद्योग स्थापित करके आर्थिक उन्नति की ओर तेजी से कदम बढ़ाने का प्रयत्न कर रहा है। ऊर्जा की उत्पत्ति के लिए वे जीवाश्मी ईंधन को जलाते हैं। कोयला और पेट्रोल भूमि के गर्भ से निकाल-निकाल कर दिन-रात जलाया जा रहा है। जिससे लोगों को सुख-सुविधाएँ तो अवश्य प्राप्त हो रही हैं पर साथ ही साथ कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैसों की मात्रा वायुमंडल में बढ़ती जा रही है। ये दोनों गैसें वायु के तापमान को तेजी से बढ़ा रही हैं। इसे ही ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। इस तापमान वृद्धि का परिणाम यह हो रहा है कि ध्रुवों पर जमी बर्फ़ की परत पिघलने लगी है। जिस ग्लेशियर से गंगा नदी निकलती है, वह तेजी से पिघलने लगा है। इसका परिणाम यह हो सकता है कि आने वाले समय में धरती के वातावरण का तापमान बढ़ने के साथ-साथ जल-स्रोतों में कमी आने लगेगी। ‘ग्लोबल वार्मिग’ अर्थात् ‘वैश्विक तापन’ पूरी पृथ्वी के लिए खतरे की घंटी है जो सारे संसार के भविष्य के लिए अति खतरनाक सिद्ध होगी। इससे समुंदरों का तल बढ़ने लगेगा। इसके परिणामस्वरूप समुंदरों के तटों पर नगर डूबने लगेंगे। समुद्री द्वीप पूरी तरह समुद्र की गहराई में समा जाएंगे।
ग्लोबल वार्मिग की समस्या से निपटने के लिए कोई एक व्यक्ति या कोई एक देश कुछ नहीं कर सकता। इस समस्या से निपटने के लिए विश्व भर के देशों को एक साथ मिलकर प्रयत्न करना होगा। हमें ऐसी नीतियां बनानी और कठोरता से लागू करनी होंगी कि कोयले और पेट्रोल के दहन को नियंत्रित किया जाए। सौर ऊर्जा, जलीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, सागरीय ऊर्जा आदि का अधिक-से-अधिक प्रयोग किया जाए ताकि हवा में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैसें न बड़े। वाहनों के लिए सौर ऊर्जा या विद्युत् का प्रयोग किया जाए।
इस समस्या से निपटने के लिए हमारी भूमिका यह हो सकती है कि हम योजना बद्ध तरीके से जन जागृति में सहायक बनें। जिन लोगों को इस समस्या का अभी पता नहीं है, उन्हें सचेत करें। अपने स्कूल में ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करें जिनसे बच्चे-बच्चे को इस समस्या की जानकारी मिले। आज का बच्चा ही आने वाले कल के उद्योगपति और नेता होंगे। उचित जानकारी होने पर वे इस समस्या पर नियंत्रण पा सकेंगे।
देव कवि शब्दों का कुशल शिल्पी है जिसने एक-एक शब्द को बड़ी कुशलता से तराश कर अपने शब्द भंडार को समृद्ध किया है। उसकी वर्ण योजना में संगीतात्मकता और चित्रात्मकता विद्यमान है। भाव और वर्ण-विन्यास में संगति है। उसका एक-एक शब्द मोतियों की तरह कवित्त-सवैयों की जमीन पर सजाया गया है-
पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कीट किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।।
कवि के पास अक्षय शब्द भंडार है। भिन्न-भिन्न पर्याय और विशेषणों द्वारा देव ने भावों की विभिन्न छवियों को उतारा है। उन्होंने अभिधा, लक्षणा और व्यंजना तीनों का प्रयोग सफलतापूर्वक किया है-
आरसी से अंबर में आभा-सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।
कवि के शब्दों में तत्सम की अधिकता है। तद्भव शब्दावली का उन्होंने सुंदर प्रयोग किया है।
देव के काव्य में सुंदर ढंग से बिंब योजनाएँ की गई हैं। इससे श्रृंगारपरक अंश तो खिल उठे हैं। चाक्षुक बिंब योजना तो ऐसी है कि श्रोता या पाइक की आँखों के सामने कवि के मन में उभरी रूप-छवि स्पष्ट उभर आती है-
(i) साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हंसी मुखचंद जुंहाई।
(ii) पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
देव के बिंब विधान में संवेदनात्मक, अलंकरण और क्रमबद्धता के अतिरिक्त भावात्मक संबंध स्थापित करने की शक्ति है।
देव प्रेम, सौंदर्य और श्रृंगार के कवि हैं। उन्होंने अपने अधिकतर साहित्य की रचना सौंदर्य और श्रृंगार के आधार पर ही की है। उनकी कविता में सौंदर्य और श्रृंगार का पुराना रूप ही दिखाई देता है। उन्होंने इस क्षेत्र में नई कल्पनाएँ नहीं की थीं। उन्होंने परंपरागत उपमानों का ही प्रयोग किया था।
उन्होंने श्री कृष्ण की सुंदरता सामंती प्रवृत्ति के आधार पर की है।
पायीन नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
सांवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
राधा अद्भुत सौंदर्य की स्वामिनी है। उसके सौंदर्य के सामने सारे नर-नारी तो पानी भरते हैं। चाँद भी उसकी सुंदरता का बिंब मात्र है:
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।
चांदनी के रंग वाली वह तो स्फटिक के महल में छिपी-सी रहती है।
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