क्षितिज भाग २ Chapter 3 देव - सवैया
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    NCERT Solution For Class 10 Hindi क्षितिज भाग २

    देव - सवैया Here is the CBSE Hindi Chapter 3 for Class 10 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 10 Hindi देव - सवैया Chapter 3 NCERT Solutions for Class 10 Hindi देव - सवैया Chapter 3 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 10 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN10001490

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर प्रसंग सहित व्याख्या कीजिये:
    पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
    साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
    माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई
    जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई।।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत सवैया रीतिकालीन कवि देव के द्वारा रचित है और इसे हमारी पाठ्‌य-पुस्तक क्षितिज (भाग- 2) में संकलित किया गया है। कवि ने श्री कृष्ण, के बालरूप र्को अद्‌भुत सुंदरता का वर्णन किया है।

    व्याख्या- कवि कहता है कि श्री कृष्ण के पाँव में पाजेब है जो उन के चलने पर बजने के कारण अत्यंत सुंदर ध्वनि उत्पन्न करती है। उनकी कमर में करघनी है जो मीठी धुन पैदा करती है। उनके साँवले-सलोने अंगों पर पीले रंग के वस्त्र शोभा देते हैं। उनकी छाती पर शोभा देती हुई फूलों की माला मन में प्रसन्नता उत्पन्न करती है। उनके माथे पर अट है और उन की बड़ी-बड़ी आँखें हैं जो चंचलता से भरी हैं। उनकी मंद-मंद हँसी उनके चांद जैसे सुंदर चेहरे पर चांदनी की तरह फैली हुई है। संसार रूपी इस मंदिर में दीपक के समान जगमगाते हुए अति सुंदर श्रीकृष्ण की जयजयकार हो। देव कवि कहता है कि जीवन में सदा श्रीकृष्ण सहायता करते रहें।

    Question 2
    CBSEENHN10001491

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये:
    पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
    साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
    माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई
    जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई।।

    पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    देव कवि ने पद में श्रीकृष्ण के बाल रूप की सुंदरता को प्रस्तुत किया है। साँवले रंग के श्रीकृष्ण पीले रंग के वस्त्रों में सजे हुए अति सुंदर लगते हैं। उनके गले में माला है; पाँव में पाजेब है और कमर में करघनी शोभा दे रही है। उनके माथे पर मुकुट है और चेहरे पर मुस्कान चांदनी के समान फैली हुई है।

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    Question 22
    CBSEENHN10001511

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर प्रसंग सहित व्याख्या कीजिये:
    डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
    सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
    पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
    कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
    पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
    कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
    मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
    प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पद हमारी पाठ्‌य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग- 2) में संकलित ‘कवित्त’ से लिया गया है। जिस के रचयिता रीतिकालीन कवि देव है। कवि ने ऋतुराज बसंत को एक बालक के रूप में प्रस्तुत किया है और प्रकृति के प्रति अपने प्रेम भाव को प्रकट किया है।

    व्याख्या- कवि कहता है कि बसंत ऋतु आ गई। बसंत एक नन्हें बालक की तरह पेड़ की डाली पर नए-नए पलों के पलने रूपी बिछौने पर झूलने लगा है। फूलों का ढीला-ढाला झबला उस के शरीर पर अत्यधिक शोभा दे रहा है। अर्थात् बसंत के आते ही पेड़-पौधे नए-नए पत्तों और फूलों से सज-धज कर शोभा देने लगे हैं। हवा उसके पलने को झुलाती है। देव कवि कहता है कि मोर और तोते अपनी-अपनी आवाजों में उस से बातें करते हैं। कोयल उसके पलने को झुलाती है और तालियाँ बजा-बजा कर अपनी प्रसन्नता प्रकट करती है। कमल की कली रूपी नायिका सिर पर लता रूपी साड़ी से सिर ढांप कर अपने पराग कणों से बालक बसंत की नजर उतार रही है। अर्थात् वह बालक बसंत को दूसरों की बुरी नजर से बचाने का वैसा ही टोटका कर रही है, जैसा सामान्य नारियाँ किसी बच्चे की नजर उतारने के लिए उस के सिर के चारों ओर राई-नमक घुमाकर आग में डालने का टोटका किया करती हैं। यह बसंत कामदेव महाराज का बालक है जिसे प्रात: होते ही गुलाब चुटकियाँ बजा कर जगाते हैं। अर्थात् गुलाब की कली फूल में बदलने से पहले जब चटकती है तो बसंत को जगाने के लिए ही ऐसा करती है।

    Question 23
    CBSEENHN10001512

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये
    डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
    सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
    पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
    कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
    पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
    कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
    मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
    प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।

    कवित्त में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    देव द्वारा रचित कवित्त में प्रकृति के मानवीकरण रूप को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। बसंत का बालक के रूप में जन्म हुआ है जिस की सेवा-सुश्रुषा में सारी प्रकृति जी-जान से जुट गई है। पत्तों के बिछौने पर हवा उसे झुलाती है और फूलों ने उसे वस्त्र प्रदान किए हैं। मोर और तोते उससे बातें करते हैं तो कोयल तालियाँ बजा-बजा कर प्रसन्न होती है। कमल की कली उसे लगी नज़र को दूर करने के लिए टोटका करती है और गुलाब के फूल चटक-चटक कर उसे सुबह जगाने का कार्य करते हैं। कामदेव के बालक की सेवा में सारी प्रकृति पूरी तरह से लगी हुई हैं।

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    Question 41
    CBSEENHN10001530

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये:
    डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
    सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
    पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
    कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
    पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
    कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
    मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
    प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।

    पद में किन अलंकारों का प्रयोग किया गया है?

    Solution

    अनुप्रास-पलना बिछौना नव पल्लब, बतराबैं, देव, हलवै-हुलसावै।
    ‘सिर सारी’
    ‘मदन महीप’
    ‘केकी कीर’, ‘कर तारी’
    ‘बालक बसंत’
    ‘पुरित पराग सों उतारों करै राई’
    रूपक-मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि
    प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।

    Question 42
    CBSEENHN10001531

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर प्रसंग सहित व्याख्या कीजिये:
    फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर,
    उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
    बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
    दूध को सो फेन फेल्यो आंगन फरसबंद।
    तारा सी तरुनि तामें टाढ़ी झिलमिली होति,
    मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
    आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
    प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पद रीतिकालीन कवि देव के द्वारा रचित है जिस में कवि ने चांदनी रात की आभा को अति सुंदर ढंग से प्रकट किया है। कवि ने वास्तव में इसके माध्यम से राधा के रूप-सौंदर्य को प्रस्तुत करने की चेष्टा की है।

    व्याख्या- अमृत की धवलता और उज्ज्वलता वाले भवन को स्फटिक की शिलाओं से इस प्रकार बनाया गया है कि उस में दही के समुंदर की तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है। देव कवि कहते हैं कि भवन बाहर से भीतर तक चाँदनी उज्ज्वलता से इस प्रकार भरा हुआ है कि उसकी दीवारें भी दिखाई नहीं दे रही। दूध के झाग जैसी उज्ज्वलता सारे गन और फर्श के रूप में बने ऊँचे स्थान पर फैली हुई है। इस भवन में तारे की तरह झिलमिलाती युवती राधा ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे मोतियों की आभा और जूही की सुगंध हो। राधा की रूप छवि ऐसी ही है। आइने जैसे साफ-स्वच्छ आकाश में राधा का गोरा रंग ऐसे फैला हुआ है कि इसी के कारण चंद्रमा राधा का प्रतिबिंब-सा लगता है।

    Question 43
    CBSEENHN10001532

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये:
    फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर,
    उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
    बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
    दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
    तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
    मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
    आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
    प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।

    पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।


    Solution
    महाकवि देव ने चाँदनी रात की आभा के माध्यम से राधा की अपार सुंदरता को प्रस्तुत किया है। उसकी सुंदरता से ही चाँद ने सुंदरता प्राप्त की है। चांदनी का प्रभाव अति व्यापक है जिस ने सारे भवन को उज्ज्वलता प्रदान कर दी है।
    Question 52
    CBSEENHN10001541

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये:
    फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर,
    उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
    बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
    दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
    तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
    मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
    आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
    प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।

    पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    महाकवि देव ने चाँदनी रात की आभा के माध्यम से राधा की अपार सुंदरता को प्रस्तुत किया है। उसकी सुंदरता से ही चाँद ने सुंदरता प्राप्त की है। चांदनी का प्रभाव अति व्यापक है जिस ने सारे भवन को उज्ज्वलता प्रदान कर दी है।
    Question 68
    CBSEENHN10001557

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये:
    फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर,
    उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
    बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
    दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
    तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
    मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
    आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
    प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।

    पद में किन अलंकारों का प्रयोग किया गया है?

    Solution

    सभंग यमक- • उदधि दधि।
    रुपक- • उदधि दही।
    अनुप्रास-
    • ‘सिलानि सौ सुधारयौ सुधा’।
    • ‘फेन फैल्यो’।
    • ‘तारा सी तरुनि तामें’, ‘मोतिन की जोति’।
    • ‘मिल्यो मल्लिका को मकरंद’।
    उत्पेक्षा- • फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर।
    व्यतिरेक- • प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।
    उपमा-  • दूध को सोफेन फैल्यो चिन फरसबंद।
             • तारा-सीस तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति

    • आरसी से अंबर में

    • आभा सी उजारी लगै।

    Question 69
    CBSEENHN10001558

    कवि ने ‘श्री ब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?

    Solution
    कवि ने श्री कृष्ण के लिए ‘श्री ब्रज दूलह’ का प्रयोग किया है। श्री कृष्ण ब्रह्म स्वरूप है और सृष्टि के कण-कण में समाए हुए हैं। सारी सृष्टि उन्हीं की लीला का परिणाम है। सभी सृष्टि उनकी प्रेम, करुणा और दया का परिणाम है। वे प्रत्येक प्राणी के जीवन के आधार हैं और सभी की आत्मा में उन्हीं का वास है। इसीलिए उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा गया है।
    Question 70
    CBSEENHN10001559

    पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।

    Solution

    (क) अनुप्रास-
    (i) कटि किंकिनि के पुनि की मधुराई
    (ii) सांवरे अंग लसै पट पीत।
    (iii) हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
    (iv) मंद हंसी मुखचंद जुलाई।
    (v) जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर।
    (ख) रूपक-
    (i) मंद हंसी मुखचंद जुंहाई।
    (ii) जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर।

     
    Question 71
    CBSEENHN10001560

    निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य कीजिए-
    पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
    साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।

    Solution
    देव ने श्रीकृष्ण की अपार रूप-सुंदरता का वर्णन करते हुए माना है कि उनके पाँच में पाजेब शोभा देती है जो उनके चलने पर मधुर ध्वनि उत्पन्न करती है। उनकी कमर में करघनी मधुर धुन पैदा करती है। उनके सांवले-सलोने शरीर पर पीले रंग के वस्त्र अति शोभा देते है। उनकी छाती पर फूलों की सुंदर माला शोभा देती हैं। ब्रिज भाषा में रचित पंक्तियों में तत्सम शब्दावली की अधिकता है। सवैया छंद और स्वरमैत्री लयात्मकता का आधार है। अभिधा शब्द शक्ति ने कथन को सरलता, सरसता और सहजता प्रदान की है। अनुप्रास अलंकार की स्वाभाविक शोभा प्रकट की गई है।
    Question 72
    CBSEENHN10001561

    दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज बसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत बसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है?

    Solution
    परंपरागत रूप से बसंत का वर्णन करते हुए कवि प्राय: ऋतु परिवर्तन की शोभा का वर्णन करते हैं। रंग-बिरंगे फूलों, चारों ओर फैली हरियाली, नायिकाओं के झूले, परंपरागत रागों, राग-रंग आदि का कवि बखान करते हैं। वे नर-नारियों के हृदय में उत्पन्न होने वाले प्रेम और काम-भावों का वर्णन करते हैं, लेकिन इस कवित्त में देव कवि ने बसंत का बाल रूप में चित्रण किया है, जो कामदेव के बालक हैं। सारी प्रकृति उनके साथ वैसा ही व्यवहार करती दिखाई गई है, जैसा सामान्य जीवन में नवजात और छोटे बच्चों से व्यवहार किया जाता है। इससे कवि की कल्पना शीलता और सुकुमार भाव प्रवणता का परिचय मिलता है।
    Question 73
    CBSEENHN10001562

    ‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’ -इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    काव्य-रूढ़ि है कि सुबह-सवेरे जब कलियाँ फूलों के रूप में खिलती हैं तो ‘चट्’ की ध्वनि करती हुई खिलती हैं। कवि ने इसी काव्य-रूढ़ि का प्रयोग करते हुए बालक रूपी बसंत को प्रात: जगाने के लिए गुलाब के फूलों की सहायता ली है। सुबह गुलाब के खिलते ही चहकने की ध्वनि उत्पन्न होती है। कवि ने इसी से भाव स्पष्ट किया है कि वह चुटकियाँ बजाकर बाल-बसंत को प्यार से जगाता है।
    Question 74
    CBSEENHN10001563

    चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों से देखा है?

    Solution
    कवि ने चाँदनी रात की सुंदरता को स्फटिक की शिलाओं से बने सुधा मंदिर में प्रकट किया है, जो दही के समुंदर में उत्पन्न तरंगों के रूप में दिखाई देती है। वह दूध की झाग के समान सर्वत्र फैलकर अपनी सुंदरता को व्यक्त करती है। सारा आकाश उसकी आभा से जगमगाता है। चाँदनी रात में चांदनी की तरह दमकती हुई राधा का प्रतिबिंब से ही चाँद लगता है।
    Question 75
    CBSEENHN10001564

    ‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’ - इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौन-सा अलंकार है?

    Solution
    राधा का रूप अति सुंदर है। चाँदनी में नहाया हुआ राधा का रूप अति उज्ज्वल है। चंद्रमा की शोभा और चमक-दमक उसकी अपनी नहीं है बल्कि वह राधा के रूप को बिंबित कर रहा है, इसीलिए वह इतना सुंदर है। इस पंक्ति में उपमा अलंकार है।
    Question 76
    CBSEENHN10001565

    तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?

    Solution
    फटिक सिलानि, उदधि दधि, दूध को सो फेन, मोतिन की जोति, तारासी मल्लिका को मकरंद, आरसी से अंबर।
    Question 77
    CBSEENHN10001566

    पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।

    Solution

    देव रीतिकालीन आचार्य कवि थे, जिन के काव्य में रीतिकालीन कविता की लगभग सभी विशेषताएँ दिखाई दे जाती हैं। पठित कविताओं के आधार पर उनकी निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ दिखाई देती है-
    1 श्रृंगारिकता- देव ने अपनी कविताओं में राधा-कृष्ण के माध्यम से अपनी श्रृंगारिक भावनाएँ प्रकट की हैं। उनकी प्रवृत्ति भी अन्य रीति कालीन कवियों की तरह संयोग श्रृंगार में अधिक रमी है। राधा की रूप माधुरी ने विशेष रूप से प्रभावित किया है। चाँदनी रात में उसका रूप ऐसा निखरा हुआ है कि चंद्रमा भी उसका बिंब मात्र दिखाई देती है-

    तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होती,
    मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
    आरसी से अंबर में आभा-सी उजारी लगै,
    पारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।

    2. भक्ति- भाव-देव चाहे श्रृंगारिक कवि थे, पर भारतीय संस्कारों में बंध कर वे कभी नास्तिक नहीं रहे। उन्होंने अपनी कविता में बार-बार वैराग्य भावना और आस्तिकता को प्रकट किया है। वे वैष्णव थे। उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रति अपने भक्ति-भाव को प्रकट किया है-
    माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हंसी मुख चंद जुलाई,
    जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्री बजदूलह ‘देव’ सहाई।।

    3. प्रकृति-चित्रण-देव ने अपनी कविताओं में प्रकृति -चित्रण अति सुंदर ढंग से किया है। उनके काव्य में प्रकृति साध्य नहीं है बल्कि साधन है। उन्होंने प्रकृति वर्णन में ऋतु वर्णन की परंपरा का पालन किया। उनकी प्रकृति संबंधी मौलिक दृष्टि की वहां सराहना करनी पड़ती है जहाँ उन्होंने बसंत का अति भावपूर्ण चित्रण किया है। उन्होंने बसंत का परंपरागत वर्णन न कर उसे कामदेव के बालक के रूप में प्रकट किया है जिसकी सेवा में सारी प्रकृति लीन हो जाती है-

    डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
    सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
    पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
    कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।

    4. कलापक्ष- देव ने अपने काव्य को सफल अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए शब्द शक्तियों का अच्छा प्रयोग किया। उनके अमिधा के प्रयोग में सहजता है। उन्होंने माधुर्य और प्रसाद गुण का अच्छा प्रयोग किया है। उन्हें अनुप्रास अलंकार के प्रति विशेष मोह है-
    (i) पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन
    (ii) मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि
    (iii) कटि किंकिनि कै पुनि की मधुराई
    (iv) मोतिन की जोति मिलो मल्लिका को मकरंद
    इन्होंने उपमा का प्रयोग भी अच्छा किया है। ब्रज भाषा की कोमलकांत शब्दावली का इन्होंने सार्थक और सुंदर प्रयोग किया है। इनके काव्य में तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग किया है।

    Question 78
    CBSEENHN10001567

    आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।

    Solution
    मेरा घर यमुना-किनारे से कुछ ही दूरी पर है जिस के दोनों किनारे हरे-भरे पेड़ों और सरकंडों और झाड़ियों से भरे रहते हैं। पूर्णिमा की रात को सारा आकाश तो चाँदनी से जगमगाता ही है पर यमुना नदी का पानी भी उससे जगमाता-सा प्रतीत होता है। जब पानी की लहरें तेजी से आगे बढ़ती है तो चाँद के चमकीले टुकड़े-दुकड़े से उन पर सवार उछलते-कूदते-से प्रतीत होते हैं। अंधेरी रातों में प्राय: न दिखाई देने वाले पेड़ चाँदनी में अपना काला रूप लिए दिखाए देते हैं। वे सुंदर नहीं लगते। वे कुछ-कुछ डरावने से प्रतीत होते हैं। चाँदनी रात में कोई- कोई नौका यमुना में तैरती और आगे बढ़ती बहुत सुंदर लगती है।
    Question 79
    CBSEENHN10001568

    भारतीय ऋतुचक्र में छह ऋतुएँ मानी गई हैं, वे कौन-कौन सी हैं?

    Solution
    गर्मी, सर्दी, वर्षा, बसंत, हेमंत, शिशिर।

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    Question 80
    CBSEENHN10001569

    ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के कारण ऋतुओं में क्या परिवर्तन आ रहे हैं? इस समस्या से निपटने के लिए आपकी क्या भूमिका हो सकती है?

    Solution

    विश्व भर में उद्योग-धंधों को बड़ी तेजी से स्थापित किया जा रहा है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद हर देश नए-नए उद्योग स्थापित करके आर्थिक उन्नति की ओर तेजी से कदम बढ़ाने का प्रयत्न कर रहा है। ऊर्जा की उत्पत्ति के लिए वे जीवाश्मी ईंधन को जलाते हैं। कोयला और पेट्रोल भूमि के गर्भ से निकाल-निकाल कर दिन-रात जलाया जा रहा है। जिससे लोगों को सुख-सुविधाएँ तो अवश्य प्राप्त हो रही हैं पर साथ ही साथ कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैसों की मात्रा वायुमंडल में बढ़ती जा रही है। ये दोनों गैसें वायु के तापमान को तेजी से बढ़ा रही हैं। इसे ही ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। इस तापमान वृद्धि का परिणाम यह हो रहा है कि ध्रुवों पर जमी बर्फ़ की परत पिघलने लगी है। जिस ग्लेशियर से गंगा नदी निकलती है, वह तेजी से पिघलने लगा है। इसका परिणाम यह हो सकता है कि आने वाले समय में धरती के वातावरण का तापमान बढ़ने के साथ-साथ जल-स्रोतों में कमी आने लगेगी। ‘ग्लोबल वार्मिग’ अर्थात् ‘वैश्विक तापन’ पूरी पृथ्वी के लिए खतरे की घंटी है जो सारे संसार के भविष्य के लिए अति खतरनाक सिद्ध होगी। इससे समुंदरों का तल बढ़ने लगेगा। इसके परिणामस्वरूप समुंदरों के तटों पर नगर डूबने लगेंगे। समुद्री द्वीप पूरी तरह समुद्र की गहराई में समा जाएंगे।

    ग्लोबल वार्मिग की समस्या से निपटने के लिए कोई एक व्यक्ति या कोई एक देश कुछ नहीं कर सकता। इस समस्या से निपटने के लिए विश्व भर के देशों को एक साथ मिलकर प्रयत्न करना होगा। हमें ऐसी नीतियां बनानी और कठोरता से लागू करनी होंगी कि कोयले और पेट्रोल के दहन को नियंत्रित किया जाए। सौर ऊर्जा, जलीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, सागरीय ऊर्जा आदि का अधिक-से-अधिक प्रयोग किया जाए ताकि हवा में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैसें न बड़े। वाहनों के लिए सौर ऊर्जा या विद्‌युत् का प्रयोग किया जाए।

    इस समस्या से निपटने के लिए हमारी भूमिका यह हो सकती है कि हम योजना बद्‌ध तरीके से जन जागृति में सहायक बनें। जिन लोगों को इस समस्या का अभी पता नहीं है, उन्हें सचेत करें। अपने स्कूल में ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करें जिनसे बच्चे-बच्चे को इस समस्या की जानकारी मिले। आज का बच्चा ही आने वाले कल के उद्‌योगपति और नेता होंगे। उचित जानकारी होने पर वे इस समस्या पर नियंत्रण पा सकेंगे।

    Question 81
    CBSEENHN10001570

    देव की कविता में शब्द भंडार पर टिप्पणी कीजिए।

    Solution

    देव कवि शब्दों का कुशल शिल्पी है जिसने एक-एक शब्द को बड़ी कुशलता से तराश कर अपने शब्द भंडार को समृद्ध किया है। उसकी वर्ण योजना में संगीतात्मकता और चित्रात्मकता विद्यमान है। भाव और वर्ण-विन्यास में संगति है। उसका एक-एक शब्द मोतियों की तरह कवित्त-सवैयों की जमीन पर सजाया गया है-
    पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कीट किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
    साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।।

    कवि के पास अक्षय शब्द भंडार है। भिन्न-भिन्न पर्याय और विशेषणों द्वारा देव ने भावों की विभिन्न छवियों को उतारा है। उन्होंने अभिधा, लक्षणा और व्यंजना तीनों का प्रयोग सफलतापूर्वक किया है-

    आरसी से अंबर में आभा-सी उजारी लगै,
    प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।
    कवि के शब्दों में तत्सम की अधिकता है।  तद्‌भव शब्दावली का उन्होंने सुंदर प्रयोग किया है।

    Question 82
    CBSEENHN10001571

    पठित पदों के आधार पर देव के चाक्षुक बिंब विधान को स्पष्ट कीजिए।

    Solution

    देव के काव्य में सुंदर ढंग से बिंब योजनाएँ की गई हैं। इससे श्रृंगारपरक अंश तो खिल उठे हैं। चाक्षुक बिंब योजना तो ऐसी है कि श्रोता या पाइक की आँखों के सामने कवि के मन में उभरी रूप-छवि स्पष्ट उभर आती है-
    (i) साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
    माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हंसी मुखचंद जुंहाई।

    (ii) पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
    कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।

    देव के बिंब विधान में संवेदनात्मक, अलंकरण और क्रमबद्‌धता के अतिरिक्त भावात्मक संबंध स्थापित करने की शक्ति है।

    Question 83
    CBSEENHN10001572

    देव के कवित्त और सवैया की विशेषता लिखिए।

    Solution
    छंद में लयमान होना कविता की विशेषता है। इससे कविता की सुंदरता की रक्षा होती है। विभिन्न छंदों के प्रयोग से काव्य के भावों को गीत दी जा सकती है। देव ने कवित्त और सवैया के प्रयोग से लय की उत्पत्ति की है। कवि ने श्रृंगारिक लय बनाने के लिए कवित्त छंद का प्रयोग अधिक किया है। सवैया से उसने प्रसाद, गुण और ओज तीनों गुणों को सरलता से प्रस्तुत करने में उन्होंने सफलता पाई है।
    Question 84
    CBSEENHN10001573

    पठित कविताओं को आधार बनाकर देव के सौंदर्य-निरूपण पर टिप्पणी कीजिए।

    Solution

    देव प्रेम, सौंदर्य और श्रृंगार के कवि हैं। उन्होंने अपने अधिकतर साहित्य की रचना सौंदर्य और श्रृंगार के आधार पर ही की है। उनकी कविता में सौंदर्य और श्रृंगार का पुराना रूप ही दिखाई देता है। उन्होंने इस क्षेत्र में नई कल्पनाएँ नहीं की थीं। उन्होंने परंपरागत उपमानों का ही प्रयोग किया था।
    उन्होंने श्री कृष्ण की सुंदरता सामंती प्रवृत्ति के आधार पर की है।
    पायीन नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
    सांवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।

    राधा अद्‌भुत सौंदर्य की स्वामिनी है। उसके सौंदर्य के सामने सारे नर-नारी तो पानी भरते हैं। चाँद भी उसकी सुंदरता का बिंब मात्र है:
    आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै
    प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।

    चांदनी के रंग वाली वह तो स्फटिक के महल में छिपी-सी रहती है।

    Question 85
    CBSEENHN10001574

    चाँदनी रात के उस रूप का वर्णन कीजिए, जिसे कवि ने अपने कवित्त में वर्णित किया है ?

    Solution
    चाँदनी रात सुंदरता की पर्याय है जिसकी आभा ने सारे संसार को सुंदरता प्रदान बार दी है स्फटिक की शिलाओं से अमृत-सा उज्ज्वल भवन जगमगा उठता है और दही रूपी सागर की तरंगें अपार मात्रा में उमग जाती हैं। दूध की झाग-सी चाँदनी इस प्रकार सब ओर फैल जाती है कि बाहर-भीतर की दीवारें तक दिखाई नहीं देती। गन और फर्श चाँदनी-से नहा उठते है। तारे-सी सुंदर राधा चाँदनी में झिलमिलाती हुई ऐसी प्रतीत होती है जैसे मोती की आभा में मल्लिका के पराग की सुगंध मिली हो। आइने जैसे साफ-स्वच्छ आकाश में आभा चाँदनी फैल जाती है। चंद्रमा की जगमगाहट राधा के प्रतिबिंब का ही रूप है।

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